शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्रि पर देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. ऐसे ही मध्य प्रदेश के सागर शहर में भी सदियों पुराना प्रसिद्ध बाघराज मंदिर है. /हां हरसिद्धि माता तीन रूपों में विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां पर दशकों पहले तक बाघ माता के दर्शन करने के लिए आते थे. वे माता की सेवा में रहते थे. जंगली इलाका होने की वजह से भटके हुए लोगों को रास्ता भी दिखाते है. इसलिए यह इलाका बाघराज के नाम से प्रसिद्ध हो गया. मंदिर परिसर में बाघ की एक मूर्ति भी है. जिसकी पूजा की जाती है. मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि यह शहर के 90 फीसदी परिवारों की कुलदेवी हैं.

प्रसिद्ध बाघराज मंदिर में नवरात्रि के समय पर सत चंडी महायज्ञ का आयोजन पिछले 54 सालों से किया जा रहा है. मंदिर परिसर में विशाल मेला लगता है. सैकड़ो की संख्या में रोजाना माता के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. अष्टमी और नवमी पर विशेष रूप से लोग माता को खप्पर चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं.

भक्तों की मुरादों को पूरा करती हैं बाघराज माता
तीन पीढियां से मंदिर में सेव कर रहे पुजारी पुष्पेंद्र पाठक महाराज लोकल 18 से कहा कि पहले यह मंदिर शहर के बिल्कुल बाहर था. यह पहाड़ी और जंगल वाला इलाका था. यहां पर बाघों का बसेरा रहता था धीरे-धीरे आबादी बढ़ती गई. शहर का विकास होता गया बाघों की संख्या घटती गई. लेकिन बाघ अपनी अतीत की निशानी यहां छोड़ गए हैं. अब माता के दर्शन करने के लिए जो भी श्रद्धालु आता है. किसी भी तरह की मनोकामना हो वह पूरी होती है.


मंदिर परिसर में एक गुफा
माता किसी को भी खाली हाथ अपने दरबार से नहीं भेजती हैं. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि पहले यहां केवल माता का चबूतरा था, धीरे-धीरे माता की एक मडिया बनी लेकिन अब मंदिर ने विशाल और भव्य रूप ले लिया है. माता मंदिर परिसर में एक गुफा भी है. जिसमें अजगर दादा रहते हैं. जिन्हें सिद्ध सन्यासी संत के रूप में पूजा जाता है. लेकिन आज तक कभी इस इलाके में किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. यही माता और अजगर दादा की महिमा है.